Clean Narmada Green Jabalpur
Friday, June 11, 2010
Monday, March 29, 2010
नर्मदा का उद्गम एवं मार्ग
नर्मदा का उद्गम एवं मार्ग
[संपादित करें] उद्गम एवं मार्ग
नर्मदा नदी भारत में विंध्याचल और सतपूड़ा पर्वतश्रेणियों के पूर्वी संधिस्थल पर मध्यप्रदेश के अमरकंटक नामक स्थान से निकलती है। यह विंध्याचल और सातपूड़ा के बीचोबीच पश्चिम दिशा की ओर प्रवाहित होती है तथा मंडला और जबलपुर से होकर गुजरती है। उद्गम से लेकर मुहाने तक इसकी कुल लंबाई प्रायः 1310 किलोमीटर है। यह सागरतल से 3000 फीट की ऊँचाई पर स्थित अमरकंटक (स्थिति: 22 डिग्री 41 मिनट उत्तरी अक्षांश तथा 81 डिग्री 48मिनट पूर्वी देशान्तर) नामक स्थान के एक कुंड से निकलती है। यह कुंड मंदिरों के समूहों से घिरा है। रीवा जिले में 40 मील बहने के बाद यह रामनग की ओर बहती है। मंडला के बाद उत्तर की ओर एक सँकरा चाप बनाती हुई यह जबलपुर की ओर मुड़ जाती है। इसके बाद 30 फीट ऊँचे धुँआधार नामक प्रपात को पार कर यह दो मील तक एक संकरे मार्ग से होकर बहने के बाद जलोढ़ मिट्टी के उर्वर मैदान में प्रवेश करती है, जिसे "नर्मदाघाटी" कहते हैं। यह घाटी विंध्य और सातपूड़ा पहाड़ियों के मध्य में स्थित है। जबलपुर और होशंगाबाद के बीच इसके किनारे 40फ़ तक ऊँचे हैं। इसी बीच में एक 340फ़ ऊँचा प्रपात भी है। पहाड़ियों से बाहर आने के बाद पुन: यह एक खुले मैदान में प्रवेश करती है। इसी स्थान पर आगे महेश्वर नामक नगर इसके किनारे बसा है। यहाँ उत्तरी किनारे पर कई मंदिर, महल एवं स्नानघाट बने हुए हैं। इसके बाद यह भरुच पहुँच कर अंत में खंभात की खाड़ी में गिर जाती है।
नर्मदा नदी का अपवाहक्षेत्र लगभग 36,000 वर्ग मील है। इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ बंजार, शेर और शक्कर, तवा, गंजाल और छोटा तवा आदि हैं, जो क्रमश: मंडला, नरसिंहपुर एवं होशंगाबाद जिले में इससे मिलती हैं। यह मुहाने से 30 मील अंदर तक 70 टन के जहाजों के चलाने योग्य रहती है। ज्वर का प्रभाव इसमें 55 मील अंदर तक रहता है। किनारे ऊँचे-ऊँचे होने के कारण यह सिंचाई के अयोग्य है। महाभारत और रामायण ग्रंथों में इसे "रीवां" के नाम से पुकारा गया है, अत: यहाँ के निवासी इसे गंगा से भी पवित्र मानते हैं। लोग ऐसा मानते हैं कि साल में एक बार गंगा स्वयम् एक काली गाय के रूप में आकर इसमें स्नान करती एवं अपने पापों से मुक्त हो श्वेत होकर लौटती है।
[संपादित करें] उद्गम एवं मार्ग
नर्मदा नदी भारत में विंध्याचल और सतपूड़ा पर्वतश्रेणियों के पूर्वी संधिस्थल पर मध्यप्रदेश के अमरकंटक नामक स्थान से निकलती है। यह विंध्याचल और सातपूड़ा के बीचोबीच पश्चिम दिशा की ओर प्रवाहित होती है तथा मंडला और जबलपुर से होकर गुजरती है। उद्गम से लेकर मुहाने तक इसकी कुल लंबाई प्रायः 1310 किलोमीटर है। यह सागरतल से 3000 फीट की ऊँचाई पर स्थित अमरकंटक (स्थिति: 22 डिग्री 41 मिनट उत्तरी अक्षांश तथा 81 डिग्री 48मिनट पूर्वी देशान्तर) नामक स्थान के एक कुंड से निकलती है। यह कुंड मंदिरों के समूहों से घिरा है। रीवा जिले में 40 मील बहने के बाद यह रामनग की ओर बहती है। मंडला के बाद उत्तर की ओर एक सँकरा चाप बनाती हुई यह जबलपुर की ओर मुड़ जाती है। इसके बाद 30 फीट ऊँचे धुँआधार नामक प्रपात को पार कर यह दो मील तक एक संकरे मार्ग से होकर बहने के बाद जलोढ़ मिट्टी के उर्वर मैदान में प्रवेश करती है, जिसे "नर्मदाघाटी" कहते हैं। यह घाटी विंध्य और सातपूड़ा पहाड़ियों के मध्य में स्थित है। जबलपुर और होशंगाबाद के बीच इसके किनारे 40फ़ तक ऊँचे हैं। इसी बीच में एक 340फ़ ऊँचा प्रपात भी है। पहाड़ियों से बाहर आने के बाद पुन: यह एक खुले मैदान में प्रवेश करती है। इसी स्थान पर आगे महेश्वर नामक नगर इसके किनारे बसा है। यहाँ उत्तरी किनारे पर कई मंदिर, महल एवं स्नानघाट बने हुए हैं। इसके बाद यह भरुच पहुँच कर अंत में खंभात की खाड़ी में गिर जाती है।
नर्मदा नदी का अपवाहक्षेत्र लगभग 36,000 वर्ग मील है। इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ बंजार, शेर और शक्कर, तवा, गंजाल और छोटा तवा आदि हैं, जो क्रमश: मंडला, नरसिंहपुर एवं होशंगाबाद जिले में इससे मिलती हैं। यह मुहाने से 30 मील अंदर तक 70 टन के जहाजों के चलाने योग्य रहती है। ज्वर का प्रभाव इसमें 55 मील अंदर तक रहता है। किनारे ऊँचे-ऊँचे होने के कारण यह सिंचाई के अयोग्य है। महाभारत और रामायण ग्रंथों में इसे "रीवां" के नाम से पुकारा गया है, अत: यहाँ के निवासी इसे गंगा से भी पवित्र मानते हैं। लोग ऐसा मानते हैं कि साल में एक बार गंगा स्वयम् एक काली गाय के रूप में आकर इसमें स्नान करती एवं अपने पापों से मुक्त हो श्वेत होकर लौटती है।
नर्मदा का हिन्दू धर्म में महत्व
हिन्दू धर्म में महत्व
नर्मदा, समूचे विश्व मे दिव्य व रहस्यमयी नदी है, इसकी महिमा का वर्णन चारों वेदों की व्याख्या में श्री विष्णु के अवतार वेदव्यास जी ने १ स्कन्द पुराण के रेवाखंड़ में किया है। इस नदी का प्राकट्य ही, विष्णु द्वारा अवतारों में किए राक्षस-वध के प्रायश्चित के लिए ही प्रभु शिव द्वारा अमरकण्टक(जिला शहडोल,मध्यप्रदेश जबलपुर-विलासपुर रेल लाईन-उडिसा मध्यप्रदेश ककी सीमा पर) के मैकल पर्वत पर कृपा सागर भगवान शंकर द्वारा १२ वर्ष की दिव्य कन्या के रूप में किया गया। महारूपवती होने के कारण विष्णु आदि देवताओं ने इस कन्या का नामकरण नर्मदा किया। इस दिव्य कन्या नर्मदा ने उत्तर वाहिनी गंगा के तट पर काशी के पंचक्रोशी क्षेत्र में १०,००० दिव्य वर्षों तक तपस्या करके प्रभु शिव से निम्न ऐसे वरदान प्राप्त किये जो कि अन्य किसी नदी और तीर्थ के पास नहीं है :'
प्रलय में भी मेरा नाश न हो। मैं विश्व में एकमात्र पाप-नाशिनी२ प्रसिद्ध होऊ ,यह अवधि अब समाप्त हो चुकी है। मेरा हर पाषाण (नर्मदेश्वर) शिवलिंग के रूप में बिना प्राण-प्रतिष्ठा के पूजित हो३। विश्व में हर शिव-मंदिर में इसी दिव्य नदी के नर्मदेश्वर शिवलिंग विराजमान है। कई लोग जो इस रहस्य को नहीं जानते वे दूसरे पाषाण से निर्मित शिवलिंग स्थापित करते हैं ऐसे शिवलिंग भी स्थापित किये जा सकते हैं परन्तु उनकी प्राण-प्रतिष्ठा अनिवार्य है। जबकि श्री नर्मदेश्वर शिवलिंग बिना प्राण के पूजित है। मेरे (नर्मदा) के तट पर शिव-पार्वती सहित सभी देवता निवास करें।
सभी देवता,ऋ़षि मुनि,गणेश,कार्तिकेय,राम,लक्ष्मण,हनुमान आदि ने नर्मदा तट पर ही तपस्या करके सिद्धियॉं प्राप्त की। दिव्य नदी नर्मदा के दक्षिण तट पर सूर्य द्वारा तपस्या करके आदित्येश्वर तीर्थ स्थापित है। इस तीर्थ पर (अकाल पड़ने पर ) ऋषियों द्वारा तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर दिव्य नदी नर्मदा १२ वर्ष की कन्या के रूप में प्रकट हो गई तब ऋषियों ने नर्मदा की स्तुति की। तब नर्मदा ऋषियों से बोली कि मेरे (नर्मदा के )तट पर देहधारी सद्गुरू से दीक्षा लेकर तपस्या करने पर ही प्रभु शिव की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है। इस आदित्येश्वर तीर्थ पर हमारा आश्रम अपने भक्तों के अनुष्ठान करता है।
नर्मदा, समूचे विश्व मे दिव्य व रहस्यमयी नदी है, इसकी महिमा का वर्णन चारों वेदों की व्याख्या में श्री विष्णु के अवतार वेदव्यास जी ने १ स्कन्द पुराण के रेवाखंड़ में किया है। इस नदी का प्राकट्य ही, विष्णु द्वारा अवतारों में किए राक्षस-वध के प्रायश्चित के लिए ही प्रभु शिव द्वारा अमरकण्टक(जिला शहडोल,मध्यप्रदेश जबलपुर-विलासपुर रेल लाईन-उडिसा मध्यप्रदेश ककी सीमा पर) के मैकल पर्वत पर कृपा सागर भगवान शंकर द्वारा १२ वर्ष की दिव्य कन्या के रूप में किया गया। महारूपवती होने के कारण विष्णु आदि देवताओं ने इस कन्या का नामकरण नर्मदा किया। इस दिव्य कन्या नर्मदा ने उत्तर वाहिनी गंगा के तट पर काशी के पंचक्रोशी क्षेत्र में १०,००० दिव्य वर्षों तक तपस्या करके प्रभु शिव से निम्न ऐसे वरदान प्राप्त किये जो कि अन्य किसी नदी और तीर्थ के पास नहीं है :'
प्रलय में भी मेरा नाश न हो। मैं विश्व में एकमात्र पाप-नाशिनी२ प्रसिद्ध होऊ ,यह अवधि अब समाप्त हो चुकी है। मेरा हर पाषाण (नर्मदेश्वर) शिवलिंग के रूप में बिना प्राण-प्रतिष्ठा के पूजित हो३। विश्व में हर शिव-मंदिर में इसी दिव्य नदी के नर्मदेश्वर शिवलिंग विराजमान है। कई लोग जो इस रहस्य को नहीं जानते वे दूसरे पाषाण से निर्मित शिवलिंग स्थापित करते हैं ऐसे शिवलिंग भी स्थापित किये जा सकते हैं परन्तु उनकी प्राण-प्रतिष्ठा अनिवार्य है। जबकि श्री नर्मदेश्वर शिवलिंग बिना प्राण के पूजित है। मेरे (नर्मदा) के तट पर शिव-पार्वती सहित सभी देवता निवास करें।
सभी देवता,ऋ़षि मुनि,गणेश,कार्तिकेय,राम,लक्ष्मण,हनुमान आदि ने नर्मदा तट पर ही तपस्या करके सिद्धियॉं प्राप्त की। दिव्य नदी नर्मदा के दक्षिण तट पर सूर्य द्वारा तपस्या करके आदित्येश्वर तीर्थ स्थापित है। इस तीर्थ पर (अकाल पड़ने पर ) ऋषियों द्वारा तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर दिव्य नदी नर्मदा १२ वर्ष की कन्या के रूप में प्रकट हो गई तब ऋषियों ने नर्मदा की स्तुति की। तब नर्मदा ऋषियों से बोली कि मेरे (नर्मदा के )तट पर देहधारी सद्गुरू से दीक्षा लेकर तपस्या करने पर ही प्रभु शिव की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है। इस आदित्येश्वर तीर्थ पर हमारा आश्रम अपने भक्तों के अनुष्ठान करता है।
Narmada maa
The source of the Narmada is a small tank called Narmada Kund located on the Amarkantak hill[6] (1,057 m (3,467.8 ft)), in the Anuppur District of eastern Madhya Pradesh. The river descends from the Amarkantak hill range at the Kapildhara falls over a cliff and meanders in the hills flowing through a tortuous course crossing the rocks and islands up to the ruined palace of Ramnagar. Between Ramnagar and Mandla, (25 km (15.5 mi)), further southeast, the course is comparatively straight with deep water devoid of rocky obstacles. The Banger [disambiguation needed] joins from the left. The river then runs north–east in a narrow loop towards Jabalpur. Close to this city, after a fall of some (9 m (29.5 ft)), called the Dhuandhara, the fall of mist, it flows for (3 km (1.9 mi)), in a deep narrow channel through the magnesium limestone and basalt rocks called the Marble Rocks; from a width of about 90 m (295.3 ft), above, it is compressed in this channel of (18 m (59.1 ft)), only. Beyond this point up to its meeting the Arabian Sea, the Narmada enters three narrow valleys between the Vindhya scarps in the north and the Satpura range in the South. The southern extension of the valley is wider at most places. These three valley sections are separated by the closely approaching line of the scarps and the Satpura hills.
Emerging from the Marble Rocks the river enters its first fertile basin, which extends sukanyaabout 320 km (198.8 mi), with an average width of 35 km (21.7 mi), in the south. In the north, the valley is limited to the Barna–Bareli plain terminating at Barkhara hills opposite Hoshangabad. However, the hills again recede in the Kannod plains. The banks are about (12 m (39.4 ft)) high. It is in the first valley of the Narmada that many of its important tributaries from the south join it and bring the waters of the northern slopes of the Satpura hills. Among them are: the Sher, the Shakkar, the Dudhi, the Tawa (biggest tributary) & the Ganjal. The Hiran, the Barna, the Choral, the Karam and the Lohar are the important tributaries joining from the north.
Below Handia and Nemawar to Hiran fall (the deer's leap), the river is approached by hills from both sides. In this stretch the character of the river is varied. The Omkareshwar island, sacred to the Lord Shiva, is the most important river island in Madhya Pradesh. At first, the descent is rapid and the stream, quickening in pace, rushes over a barrier of rocks.sukanya The Sikta and the Kaveri join it below the Khandwa plain. At two points, at Mandhar, about40 km (24.9 mi), below Nemawar, and Dadrai, 40 km (24.9 mi), further down near Punasa, the river falls over a height of about 12 m (39.4 ft).
A few kilometres further down near Bareli and the crossing ghat of the Agra to Mumbai road, National Highway 3, the Narmada enters the Mandleshwar plain, the second basin about 180 km (111.8 mi) long and 65 km (40.4 mi) wide in the south. The northern strip of the basin is only 25 km (15.5 mi). The second valley section is broken only by Saheshwar Dhara fall. The early course of about 125 km (77.7 mi) up to Markari falls is met with a succession of cataracts and rapids from the elevated table land of Malwa to the low level of Gujarat plain. Towards the west of this basin, the hills draw very close but soon dwindle down.
Below Makrai, the river flows between Vadodara district and Narmada district and then meanders through the rich plain of Bharuch district of Gujarat state. The banks are high between the layers of old alluvial deposits, hardened mud, gravels of nodular limestone and sand. The width of the river spans from about 1.5 km (0.9 mi) at Makrai to 3 km (1.9 mi) near Bharuch and to an estuary of 21 km (13.0 mi) at the Gulf of Khambat. An old channel of the river, 1 km (0.6 mi) to 2 km (1.2 mi) south from the present one, is very clear below Bharuch. The Karanjan and the Orsing are the most important tributaries in the original course. The former joins at Rundh and the latter at Vyas in Vadodara district of Gujarat, opposite each other and form a Triveni (confluence of three rivers) on the Narmada. The Amaravati and the Bhukhi are other tributaries of significance. Opposite the mouth of the Bhukhi is a large drift called Alia Bet or Kadaria Bet.
The tidal rise is felt up to 32 km (19.9 mi) above Bharuch, where the neap tides rise to about a metre and spring tide 3.5 m (11.5 ft). The river is navigable for vessels of the burthen of 95 tonnes (i.e., 380 Bombay candies) up to Bharuch and for vessels up to 35 tonnes (140 Bombay candies) up to Shamlapitha or Ghangdia. The small vessels (10 tonnes) voyage up to Tilakawada in Gujarat. There are sand bases and shoals at mouth and at Bharuch.[6] The nearby island of Kabirvad, in the Narmada River, features a gigantic Banyan tree, which covers 10,000 square metres (2.5 acres).[7].
Emerging from the Marble Rocks the river enters its first fertile basin, which extends sukanyaabout 320 km (198.8 mi), with an average width of 35 km (21.7 mi), in the south. In the north, the valley is limited to the Barna–Bareli plain terminating at Barkhara hills opposite Hoshangabad. However, the hills again recede in the Kannod plains. The banks are about (12 m (39.4 ft)) high. It is in the first valley of the Narmada that many of its important tributaries from the south join it and bring the waters of the northern slopes of the Satpura hills. Among them are: the Sher, the Shakkar, the Dudhi, the Tawa (biggest tributary) & the Ganjal. The Hiran, the Barna, the Choral, the Karam and the Lohar are the important tributaries joining from the north.
Below Handia and Nemawar to Hiran fall (the deer's leap), the river is approached by hills from both sides. In this stretch the character of the river is varied. The Omkareshwar island, sacred to the Lord Shiva, is the most important river island in Madhya Pradesh. At first, the descent is rapid and the stream, quickening in pace, rushes over a barrier of rocks.sukanya The Sikta and the Kaveri join it below the Khandwa plain. At two points, at Mandhar, about40 km (24.9 mi), below Nemawar, and Dadrai, 40 km (24.9 mi), further down near Punasa, the river falls over a height of about 12 m (39.4 ft).
A few kilometres further down near Bareli and the crossing ghat of the Agra to Mumbai road, National Highway 3, the Narmada enters the Mandleshwar plain, the second basin about 180 km (111.8 mi) long and 65 km (40.4 mi) wide in the south. The northern strip of the basin is only 25 km (15.5 mi). The second valley section is broken only by Saheshwar Dhara fall. The early course of about 125 km (77.7 mi) up to Markari falls is met with a succession of cataracts and rapids from the elevated table land of Malwa to the low level of Gujarat plain. Towards the west of this basin, the hills draw very close but soon dwindle down.
Below Makrai, the river flows between Vadodara district and Narmada district and then meanders through the rich plain of Bharuch district of Gujarat state. The banks are high between the layers of old alluvial deposits, hardened mud, gravels of nodular limestone and sand. The width of the river spans from about 1.5 km (0.9 mi) at Makrai to 3 km (1.9 mi) near Bharuch and to an estuary of 21 km (13.0 mi) at the Gulf of Khambat. An old channel of the river, 1 km (0.6 mi) to 2 km (1.2 mi) south from the present one, is very clear below Bharuch. The Karanjan and the Orsing are the most important tributaries in the original course. The former joins at Rundh and the latter at Vyas in Vadodara district of Gujarat, opposite each other and form a Triveni (confluence of three rivers) on the Narmada. The Amaravati and the Bhukhi are other tributaries of significance. Opposite the mouth of the Bhukhi is a large drift called Alia Bet or Kadaria Bet.
The tidal rise is felt up to 32 km (19.9 mi) above Bharuch, where the neap tides rise to about a metre and spring tide 3.5 m (11.5 ft). The river is navigable for vessels of the burthen of 95 tonnes (i.e., 380 Bombay candies) up to Bharuch and for vessels up to 35 tonnes (140 Bombay candies) up to Shamlapitha or Ghangdia. The small vessels (10 tonnes) voyage up to Tilakawada in Gujarat. There are sand bases and shoals at mouth and at Bharuch.[6] The nearby island of Kabirvad, in the Narmada River, features a gigantic Banyan tree, which covers 10,000 square metres (2.5 acres).[7].
Sunday, March 28, 2010
Saturday, March 27, 2010
नर्मदा स्वछता हमारा संकल्प- आशियाना संस्कार समिति
नर्मदा स्वछता हमारा संकल्प- आशियाना संस्कार समिति
समाज व समाज सेवको को अपनी जिम्मेदारी तय करना होगी उक्त विचार नर्मदा परिक्रमाबासी पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने नर्मदा सफाई अभियान में खारी घाट में ब्यक्त किये श्री पटेल कहा की श्रमशील प्रयासों में व्यापकता की जरुरत है बिना इसके लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता है इस अभियान में अनेक सामाजिक संस्थयाये सहयोग युवा समिति, आशियाना संस्कार समिति , नार्मद्खंड स्वाभिमान सेना, के अनेको कार्यकर्ता सहयोग कर रहे है.
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